अब गांव गांव नी रहगे

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बैम्बू पोस्ट 16_07_2025 बिलासपुर।
बीते दिनों एक बंद कमरे में आषाढ़ का एक दिन सोल्लास मनाया गया क्योंकि उसमें खाने पीने की चुनिंदा व्यवस्था थी।
सभी को व्यक्तिगत फ़ोन कर महफ़िल को बरसाती बनाने का विशेष आग्रह किया गया था।
बारिश में भीग कर धोबिया पाट लगाने वाले कवि श्री के सुझाव पर आयोजक ने उस अनुशंसित साहित्यकार को इस महफिल के लिए उपयुक्त होने की सूचना देते हुए जल्द पहुंचने का आग्रह करते हुए यह भी आगाह कर दिया कि एक ही कुर्सी बाकी है और बरसाती कविता का फव्वारा शुरु हो गया है।
विशेष अनुशंसित साहित्यकार अपने रमल छंदों के लिए प्रसिद्ध हैं।
पर वह यह कहते हुए अपनी गरिमा मयी उपस्थिति देने से इंकार कर दिया कि पिछली बार तीन बार फ़ोन लगाने के बाद भी मुझे बारिश में भीगने वाले कार्यक्रम में सम्मिलित नहीं किया गया अब तो मेरे आंगन में भी बरस रहा है।
बात धन दोहन व दुहित धन के दान से वरिष्ठ आसंदियो को कब्जाने वाले साहित्यकारों की चल रही थी।
पैसा फेंको तमाशा देखो वाली कहावत जितनी पुरानी है उतनी ही गांव की गलियां,नशे की लत और नशे में होने वाले महाभारत की है।
तब भी पैसे वाले कुछ लोगों को अपनी जयकारा लगाने व चरण रज उठाने के लिए ठर्रा दारु की व्यवस्था करते थे,आज भी यह रवायत जारी है तो गांव कहां बदल गया वैसा ही तो है, हां पहले कलार दारु बेचता था अब सरकार बेच रही है। युवाओं को बेवड़ा बना कर इन्हें सड़क और समाज में मनोरंजन का साधन समझा जाता है।
पिछली सरकार कहती थी कि शराब बंदी से युवा बपुरा पागल हो जायेंगे।
आज की सरकार अब शराबियों में वर्ग भेद करने जा रही है। बेवड़ा शराबी और शरीफ शराबी के दो वर्ग होंगे और अपने वर्ग के लिए निर्धारित शराब दुकान से ही खरीदी कर सकेंगे।
घुम फिर कर बात फिर साहित्य पर आ जाती है।एक कवि आज कल कविता रटने में लगा है,घर वाले पूछते हैं कि इतना क्यों रट रहे हो तो कवि बताता है कि एक कविता आयोजन है जिसमें बिना देखे कविता पढ़नी है,।
सुना था कि कवि स्वाभाविक होते हैं पर अब तो कवि और छंदाचार्य बनाये जा रहे हैं, आभासी स्कूलें चल रही हैं।
अभी हाल में एक साझा संकलन का विमोचन का भव्य कार्यक्रम हुआ, दिल्ली से प्रतिष्ठित विश्व विद्यालय से समीक्षक आमंत्रित थे।
साझा संकलन कर्ता को मंचस्थ अभ्यागत संपादक,कृतिकार के रुप में संबोधन को उक्त समीक्षक ने सिरे से ख़ारिज करते हुए बताया कि इस साझा संकलन में न संपादन कार्य हुआ है न यह पुस्तक किसी की व्यक्तिगत कृति है।
ताज्जुब है कि आज भी ऐसे समीक्षक हैं जो पुष्प गुच्छ, मौक्तिक माला,शाल,उपहार,लज़ीज़ व्यंजन का लिहाज न कर खरी खरी बात कह गया।
हाॅं,तो साहित्य श्वास लेते दिख रही है पर इस तरह कब तक?
जब रामधारी सिंह दिनकर ने पी एच डी करने की मंशा जाहिर की तो डाॅ राजेन्द्र प्रसाद जी ने कहा कि जिसने इतना विशाल साहित्य सृजन किया हो,जिसकी पुस्तकें महाविद्यालयों में पढ़ाई जाती हों,उसे पी पी एचडी की क्या आवश्यकता है?
पर आज तो नाम के आगे डाॅ लगाने की भूख इस कदर बढ़ गई है कि बिना लिखे भी, बिना उचित शिक्षा स्तर के भी पैसा फेंको तमाशा देखो वाली स्थिति है।
एक मोहतरमा के नाम के आगे डाॅ लगाना छूट जाने पर भरी सभी में अपनी नाराज़गी इस तरह व्यक्त किया- आप लोगों ने मेरे नाम के आगे डाॅ न लगा कर मुझे भरी सभा में नंगा कर दिया…
एक और संभ्रांत महिला ने दो शर्तें रख दीं कि मेरे नाम के डाॅ लगा कर ही मुझे संबोधित करें दूसरे कि मुझे अभ्यागती मंच पर आशन दिया जाए।
मंच पर बैठे साथी व खुद पर या अपने परिवार पर या किसी नेता पर तात्कालिक जीवंत चुटकले बनाने वाले लोग हास्य व्यंग्य कवि कहलाने लगे हैं तथा साहित्य दीर्घा में सम्मान से देखे जाने लगे हैं।
गांव के कोला बारी ले खीरा,पेंहटा नंदा गे, बंसी मरोइया नंदा गे, सिरसोला म मछरी झोरइया नंदा गे,सुखसी बनोइया नंदा गे,सराई के पाना के दोना पतरी नंदा गे,दारु भट्ठी म चूरत महुआ के दारु अउ चखना नंदा गे, चोरकी म दारु पियोइया नंदा गे,गैडहरी के धुर्रा नंदा गे,गरुआ के ढेटू के घांटी के बजोना नंदा गे।
नंदा गे नंदा गे हमर पुरखा के गांव नंदा गे…..।
अच्छा है!अच्छा है!सब अच्छा है; जो हुआ अच्छा है, जो हो रहा है अच्छा है,जो होने वाला है वह निश्चित रुप से अच्छा होगा।
रिपोर्टिंग: बैम्बू रिपोर्टर

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